Amaravati Stupa – अमरावती स्तूप
Amaravati Stupa in Hindi – अमरावती स्तूप (Amaravati Stupa) प्राचीन भारत की बौद्धकला और वास्तुकला का प्रसिद्ध नमूना है। अमरावती स्तूप, आंध्रप्रदेश की प्रस्तावित राजधानी अमरावती के गुंटूर जिले में स्थित है जो कि विजयवाड़ा शहर से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर है।
अमरावती स्तूप – Amaravati Stupa को महचैत्य और दीपलादिन्ने के नाम से भी जाना जाता है। यह सैकड़ों पर्यटकों के आर्कषण का केन्द्र है, इसकी सुंदर बनावट और अनूठी वास्तुकला को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
मौर्यकालीन वास्तुकला का महत्वपूर्ण नमूना- अमरावती स्तूप – Amaravati Stupa आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश में अमरावती स्तूप – Amaravati Stupa कृष्णा नदी के तट पर स्थित है और यह बौद्धिक स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के भव्य वास्तुकला का अद्भुत अवशेष है।
यह भी पढ़े –
- ग्वालियर किल्ले का इतिहास – Gwalior Fort History
- कांगड़ा किले का इतिहास – History of Kangra Fort
- भारत के ऐतिहासिक किले – Famous Forts in India
- भारत का ऐतिहासिक हौज खास किला- Hauz Khas Fort Delhi
Amaravati Stupa History – अमरावती स्तूप का इतिहास
इस महास्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और करीब 250 ईस्वी के बीच किया गया था और यह सांची स्तूप की तरह लंबा है। ऐसा भी माना जाता है कि इस स्तूप को भगवान बुद्ध के महान अनुयायी सम्राट अशोक के शासनकाल में बनवाया गया था, लेकिन इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है।
Amaravati Stupa Architecture – अमरावती स्तूप की वास्तुकला
अमरावती स्तूप ईंट से बना है और इसमें एक गोलाकार वेदिका है, जो एक हाथी के ऊपर मानव रूप में भगवान बुद्ध को दर्शाती है। स्तूप में 95 फीट तक ऊंचे प्लेटफॉर्म हैं जो चार दिशाओं में फैलते हैं। यह स्तूप दक्षिण भारत में मौर्यकालीन वास्तुकला का महत्वपूर्ण नमूना है।
अमरावती में स्थित इस महास्तूप की सुंदर बनावट न सिर्फ लोगों को अपनी तरफ आर्कषित करती है बल्कि इस स्तूप पर बनी बारीक और बेहद सुंदर नक्काशियां महात्मा बुद्ध की शिक्षा और उनके जीवन की गाथा का बखूबी चित्रण करती हैं और देखने में बेहद सजीव प्रतीत होती हैं। यही वजह है कि अमरावती स्तूप को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं।
आपको बता दें कि पहले अमरावती स्तूप चूना पत्थर से बनी एक साधारण सी संरचना थी, लेकिन जब अमरावती सातवाहन शासकों की राजधानी बना तो, सातवाहन शासकों ने इस स्तूप का फिर से निर्माण करवाया और इसे एक आकर्षण वास्तुशिल्प स्मारक का रुप दे दिया, इसके साथ ही इसमें भगवान बुद्ध की जीवन गाथा का सजीव चित्रण किया गया है, हालांकि जैसे-जैसे बौद्ध धर्म का आस्तित्व कम होता चला गए वैसे ही यह स्तूप भी उपेक्षा का शिकार हो गया।
स्तूप के अधिकांश पुरातात्विक नमूने कालचक्र की वज्रयान शिक्षाओं से संबंधित हैं।
वहीं इस अमरावती स्तूप को स्थापित करने को लेकर यह कहा जाता है कि जब सम्राट अशोक का दूत, बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अमरवती आया, तभी उन्होंने इस आकर्षण वास्तुशिल्प स्मारक की नींव रखी।
यह भी माना जाता है कि ब्रिटिश पुरातत्वविद कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने जब इस स्थल का दौरा किया तो खुदाई का काम शुरू किया गया, उस समय इस स्तूप का पता चला।
वास्तुकला और मूर्तिकला के इस भव्य स्तूप के कुछ अवशेष ही बचे हैं, जिसे ब्रिटिश, लन्दन, कोलकाता, चेन्नई और राष्ट्रीय म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है।
म्यूजियम में रखे इन अवशेषों के आधार पर यह कहा जाता है कि आंध्रप्रदेश के अमरावती में वास्तुकला और मूर्तिकला की स्थानीय मौलिक शैली विकसित हुई थी।
आपको बता दें कि अमरावती मूर्ति कला की सुंदर शैली अपने भव्य उभारदार, भित्ति-चित्रों के लिए काफी मशहूर है, इसके साथ ही यह आज पूरे दक्षिण भारत में अशोक स्तंभ का उदाहरण है।