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    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ कवितायेँ

    July 1, 2020Updated:July 29, 2021
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    Atal Bihari Vajpayee ki Kavita
    Atal Bihari Vajpayee Poems
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    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi – 50 सालों तक राजनीति में अपनी धाक जमाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी सबसे ज्यादा आदर्शवादी और प्रशंसनीय नेता थे। अटल बिहारी जी एक महान राजनेता तो थे ही, इसके साथ ही वे एक महान कवि (Atal Bihari Vajpayee Kavita) और प्रभावशाली वक्ता भी थे, जिनके अंदर अपनी अद्भभुत वाक शैली से दूसरों को आर्कषित करने की क्षमता विद्मान थी।

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    Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi

    “क़दम मिलाकर चलना होगा।”

    बाधाएं आती हैं आएं
    घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
    पावों के नीचे अंगारे,
    सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
    निज हाथों में हंसते-हंसते,
    आग लगाकर जलना होगा।
    कदम मिलाकर चलना होगा।
    हास्य-रूदन में, तूफानों में,
    अगर असंख्यक बलिदानों में,
    उद्यानों में, वीरानों में,
    अपमानों में, सम्मानों में,
    उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
    पीड़ाओं में पलना होगा।
    कदम मिलाकर चलना होगा।
    उजियारे में, अंधकार में,
    कल कहार में, बीच धार में,
    घोर घृणा में, पूत प्यार में,
    क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
    जीवन के शत-शत आकर्षक,
    अरमानों को ढलना होगा।
    कदम मिलाकर चलना होगा।
    सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
    प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
    सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
    असफल, सफल समान मनोरथ,
    सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
    पावस बनकर ढलना होगा।
    कदम मिलाकर चलना होगा।
    कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
    प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
    नीरवता से मुखरित मधुबन,
    परहित अर्पित अपना तन-मन,
    जीवन को शत-शत आहुति में,
    जलना होगा, गलना होगा।
    क़दम मिलाकर चलना होगा।
    अटल बिहारी वाजपेयी

    Atal Bihari Vajpayee Poems
    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal Bihari Vajpayee ki Kavita – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    “गीत नही गाता हूँ।”

    बेनकाब चेहरे हैं,
    दाग बड़े गहरे हैं,
    टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ।
    गीत नही गाता हूँ।

    लगी कुछ ऐसी नज़र,
    बिखरा शीशे सा शहर,
    अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ।
    गीत नहीं गाता हूँ ।

    पीठ मे छुरी सा चाँद,
    राहु गया रेखा फाँद,
    मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ।
    गीत नहीं गाता हूँ।
    अटल बिहारी वाजपेयी

    Atal Bihari Vajpayee Poems
    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal ji ki Kavita – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    “टूट सकते हैं मगर…”

    टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
    सत्य का संघर्ष सत्ता से,
    न्याय लड़ता निरंकुशता से,
    अंधेरे ने दी चुनौती है,
    किरण अंतिम अस्त होती है।

    दीप निष्ठा का‍ लिए निष्कम्प,
    वज्र टूटे या उठे भूकंप,
    यह बराबर का नहीं है युद्ध,
    हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
    हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
    और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।

    किंतु फिर भी जूझने का प्रण,
    पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
    प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
    समर्पण की मांग अस्वीकार।

    दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते।
    टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
    अटल बिहारी वाजपेयी

    Atal Bihari Vajpayee Poems
    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal ji ki Poem – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    “हरी हरी दूब पर”

    हरी हरी दूब पर
    ओस की बूंदे
    अभी थी,
    अभी नहीं हैं|
    ऐसी खुशियाँ
    जो हमेशा हमारा साथ दें
    कभी नहीं थी,
    कहीं नहीं हैं|
    क्काँयर की कोख से
    फूटा बाल सूर्य,
    जब पूरब की गोद में
    पाँव फैलाने लगा,
    तो मेरी बगीची का
    पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
    मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
    या उसके ताप से भाप बनी,
    ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
    सूर्य एक सत्य है
    जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
    मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
    यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
    क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
    कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
    सूर्य तो फिर भी उगेगा,
    धूप तो फिर भी खिलेगी,
    लेकिन मेरी बगीची की
    हरी-हरी दूब पर,
    ओस की बूंद
    हर मौसम में नहीं मिलेगी।
    अटल बिहारी वाजपेयी

    Atal Bihari Vajpayee Poems
    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal Bihari Vajpayee Kavita – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    “दूध में दरार पड़ गई”

    ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
    भेद में अभेद खो गया।
    बँट गये शहीद, गीत कट गए,
    कलेजे में कटार दड़ गई।
    दूध में दरार पड़ गई।
    खेतों में बारूदी गंध,
    टूट गये नानक के छंद
    सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
    वसंत से बहार झड़ गई
    दूध में दरार पड़ गई।
    अपनी ही छाया से बैर,
    गले लगने लगे हैं ग़ैर,
    ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
    बात बनाएँ, बिगड़ गई।
    दूध में दरार पड़ गई।
    अटल बिहारी वाजपेयी

    Atal Bihari Vajpayee Poems
    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi

    “जो कल थे”

    जो कल थे,
    वे आज नहीं हैं।
    जो आज हैं,
    वे कल नहीं होंगे।
    होने, न होने का क्रम,
    इसी तरह चलता रहेगा,
    हम हैं, हम रहेंगे,
    यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
    सत्य क्या है?
    होना या न होना?
    या दोनों ही सत्य हैं?
    जो है, उसका होना सत्य है,
    जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
    मुझे लगता है कि
    होना-न-होना एक ही सत्य के
    दो आयाम हैं,
    शेष सब समझ का फेर,
    बुद्धि के व्यायाम हैं।
    किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
    यह प्रश्न अनुत्तरित है।
    प्रत्येक नया नचिकेता,
    इस प्रश्न की खोज में लगा है।
    सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
    शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
    यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
    तो इसमें बुराई क्या है?
    हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
    धर्म की अनुभूति,
    विज्ञान का अनुसंधान,
    एक दिन, अवश्य ही
    रुद्ध द्वार खोलेगा।
    प्रश्न पूछने के बजाय
    यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।
    अटल बिहारी वाजपेयी

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    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    Atal Bihari Vajpayee Poems – अटल बिहारी वाजपेयी की कविता

    “झुक नहीं सकते”

    टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
    सत्य का संघर्ष सत्ता से
    न्याय लड़ता निरंकुशता से
    अँधेरे ने दी चुनौती है
    किरण अंतिम अस्त होती है
    दीप निष्ठा का लिये निष्कम्प
    वज्र टूटे या उठे भूकम्प
    यह बराबर का नहीं है युद्ध
    हम निहत्थे, शत्रु हे सन्नद्ध
    हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
    और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
    किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
    पुनः अंगद ने बढ़ाया चरण
    प्राण–पण से करेंगे प्रतिकार
    समर्पण की माँग अस्वीकार।
    दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
    टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
    अटल बिहारी वाजपेयी

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