Surdas Biography in Hindi – सूरदास जी की जीवनी
Surdas ki Jivani- सूरदास 15 वी शताब्दी के अंधे संत (Surdas in Hindi) कवी और संगीतकार थे सूरदास का नाम भक्ति की धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त (Surdas ki Rachnaye) कवियों में सर्वोपरि है सूरदास अपने भगवान कृष्ण पर लिखी भक्ति गीतों के लिये जाने जाते है। Surdas ki Rachnaye भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी लीलाओं से सजी होती थी।
Surdas ki Jivani – सूरदास जी की जीवनी
Surdas in Hindi – सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ का मानना हैं की उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। वही कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे।
ऐसा कहा जाता है की भक्तिकाल के महाकवि सूरदास जी और उनके गुरु वल्लभाचार्य की आयु में महज 10 दिन का अंतर था। विद्धानों के मुताबिक गुरु बल्लभाचार्य का जन्म 1534 में वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए कई विद्धान सूरदास का जन्म भी 1534 की वैशाख शुक्ल पंचमी के आसपास मानते हैं।
सूरदास जी के पिता रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया।
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- एक बार जब सूरदास जी अपनी वृन्दावन धाम की यात्रा के लिए निकले तो इस दौरान इनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई। जिसके बाद वह उनके शिष्य बन गए।
- महाकवि सूरदास ने बल्लभाचार्य से ही भक्ति की दीक्षा प्राप्त की। श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को सही मार्गदर्शन देकर श्री कृष्ण भक्ति के लिए प्रेरित किया।
- गुरु बल्लभाचार्य, अपने शिष्य को अपने साथ गोवर्धन पर्वत मंदिर पर ले जाते थे। वहीं पर ये श्रीनाथ जी की सेवा करते थे, और हर दिन दिन नए पद बनाकर इकतारे के माध्यम से उसका गायन करते थे।
- बल्लभाचार्य ने ही सूरदास जी को ही ‘भागवत लीला’ का गुणगान करने की सलाह दी थी। इसके बाद से ही उन्होंने श्रीकृष्ण का गुणगान शुरू कर दिया था। उनके गायन में श्री कृष्ण के प्रति भक्ति को स्पष्ट देखा जा सकता था।
- इससे पहले वह केवल दैन्य भाव से विनय के पद रचा करते थे। उनके पदों की संख्या ‘सहस्राधिक’ कही जाती है, जिनका संग्रहित रूप ‘सूरसागर’ के नाम से काफी मशहूर है।
- Surdas Biography in Hindi
- Surdas in Hindi – क्या सूरदास अंधे थे ? – अपने गुरु बल्लभाचार्य से शिक्षा लेने के बाद सूरदास जी पूरी तरह से भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए। सूरदास जी की कृष्ण भक्ति के बारे में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं।
- एक कथा के मुताबिक, एक बार सूरदास जी श्री कृष्ण की भक्ति नें इतने डूब गए थे कि वे कुंए में तक गिर गए थे, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने खुद साक्षात दर्शन देकर उनकी जान बचाई थी।
- जिसके बाद देवी रूकमणी ने श्री कृष्ण से पूछा था कि, हे भगवन, तुमने सूरदास की जान क्यों बचाई। तब कृष्ण भगवान ने रुकमणी को कहा के सच्चे भक्तों की हमेशा मदद करनी चाहिए, और सूरदास जी उनके सच्चे उपासक थे जो निच्छल भाव से उनकी आराधना करते थे।
- उन्होंने इसे सूरदास जी की उपासना का फल बताया, वहीं यह भी कहा जाता है कि जब श्री कृष्ण ने सूरदास की जान बचाई थी तो उन्हें नेत्र ज्योति लौटा दी थी। जिसके बाद सूरदास ने अपने प्रिय कृष्ण को सबसे पहले देखा था।
- इसके बाद श्री कृष्ण ने सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। जिसके बाद सूरदास ने कहा कि – मुझे सब कुछ मिल चुका हैं और सूरदास जी फिर से अपने प्रभु को देखने के बाद अंधा होना चाहते थे।
- क्योंकि वे अपने प्रभु के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहते थे। फिर क्या था भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त की मुराद पूरी कर दी और उन्हें फिर से उनकी नेत्र ज्योति छीन ली। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने सूरदास जी को आशीर्वाद दिया कि उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैले और उन्हें हमेशा याद किया जाए।
- Surdas Biography in Hindi
- Surdas in Hindi – महाकवि सूरदास जी के भक्तिमय गीत हर किसी को भगवान की तरफ मोहित करते हैं। वहीं Surdas ki Rachnaye और गान-विद्या की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। वहीं इसको सुनकर सम्राट अकबर भी कवि सूरदास से मिलने से लिए खुद को नहीं रोक सके।
- साहित्य में इस बात का जिक्र किया गया है कि अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीतकार तानसेन ने सम्राट अकबर और महाकवि सूरदास जी की मथुरा में मुलाकात करवाई थी।
- Surdas ki Rachnaye भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी लीलाओं से सजी होती थी। जो भी उनके पद सुनता था, वो ही श्री कृष्ण की भक्ति रस में डूब जाता था। इस तरह अकबर भी सूरदास जी का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अत्याधिक खुश हुए।
- Surdas Biography in Hindi
- सूरदास जी की रचनाएं – Surdas ki Rachnaye
- Surdas in Hindi – सूरदास जी द्वारा लिखित 5 ग्रन्थ बताएं जाते हैं। जिनमें से सूर सागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो के प्रमाण मिलते हैं। सूरसागर में करीब एक लाख पद होने की बात कही जाती है। लेकिन वर्तमान संस्करणों में करीब 5 हजार पद ही मिलते हैं। सूर सारावली में 1107 छन्द हैं।
- इसकी रचना संवत 1602 में होने का प्रमाण मिलता है। वहीं साहित्य लहरी 118 पदों की एक लघु रचना है। रस की दृष्टि से यह ग्रन्थ श्रृंगार की कोटि में आता है। सूरदास जीं ने अपने अधिकतर पद ब्रज भाषा में लिखे हैं। सूरदास जी के 5 ग्रंथों के बारे में नीचे वर्णन किया गया है जो कि इस प्रकार है।
- सूरसागर(Sursagar)
- सूरसागर, सूरदास जी का सबसे मशहूर ग्रंथ है। इस ग्रंथ में सूरदास ने श्री कृष्ण की लीलाओं का बखूबी वर्णन किया है। इस ग्रंथ में सूरदास जी के कृष्ण भक्ति के सबसे ज्यादा सवा लाख पदों का संग्रह होने की बात कही जाती हैं। लेकिन अब केवल सात से आठ हजार पद का ही अस्तित्व बचा हैं। सूरसागर की अलग-अलग जगहों पर सिर्फ 100 से ज्यादा कॉपियां ही प्राप्त हुईं हैं।
- वहीं इस ग्रंथ की जितनी भी कॉपियां मिली है। वह सभी 1656 से लेकर 19वीं शताब्दी के बीच तक की हैं।
- आपको बता दें कि सूरदास के सूरसागर में कुल 12 अध्यायों में से 11 संक्षिप्त रूप में और 10वां स्कन्ध काफी विस्तार से मिलता हैं। इस रस में इसमें भक्तिरस की प्रधानता हैं।
- सूरसारावली(Sursaravali)
- सूरदास के सूरसारावली भी प्रमुख ग्रंथों में से एक है। इसमें कुल 1107 छंद हैं। सूरदास जी ने इस ग्रन्थ की रचना 67 साल की उम्र में की थी। यह पूरा एक “वृहद् होली” गीत के रूप में रचित है। वहीं इस ग्रंथ में सूरदास जी की श्री कृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम देखने को मिलता है।
- साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri)
- साहित्यलहरी सूरदास का जी का अन्य प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है। इस ग्रंथ में पद्य लाइनों के माध्यम से कई तरह की कृष्णभक्ति की कई रचनाएं प्रस्तुत की हैं। साहित्यलहरी 118 पदों की एक लघुरचना हैं।
- इस ग्रन्थ की सबसे खास बात यह हैं इसके आखिरी पद में सूरदास ने अपने वंशवृक्ष के बारे में बताया हैं। जिसके अनुसार सूरदास का नाम “सूरजदास” हैं और वह चंदबरदाई के वंशज हैं। सूरदास जी के ये ग्रंथ श्रृंगार रस की कोटि में आता है।
- नल–दमयन्ती(Nal-Damyanti)
- नल-दमयन्ती सूरदास की कृष्ण भक्ति से अलग एक महाभारतकालीन नल और दमयन्ती की कहानी हैं।
- ब्याहलो (Byahlo)
- ब्याहलो सूरदास का नल-दमयन्ती की तरह एक अन्य मशहूर ग्रन्थ हैं। जो कि उनके भक्ति रस से अलग हैं।
- सूरदास जी की मृत्यु – Surdas Death
- सूरदास जी के जन्म की तरह मृत्यु के बारे में भी कई मतभेद है। सूरदास जी ने भक्ति के मार्ग को ही अपनाया। सूरदास जी ने अपने जीवन के आखिरी पल ब्रज में गुजारे। कई विद्धानों के मुताबिक सूर का निधन 1642 में हुआ था।