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    Biography of Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

    July 9, 2020Updated:July 29, 2021
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    A Biography of Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

    Biography of Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय पोस्ट में स्वामी विवेकानंद के विचार, स्वामी विवेकानंद जयंती (SwamiVivekananda Information) और स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण जेनेगें. महात्माओं का वास-स्थान ज्ञान है। मनुष्यों की जितनी ज्ञान-वृद्धि होती है, महात्माओं का जीवनकाल उतना ही बढ़ता जाता है। उन के जीवन काल की गणना मनुष्य शक्ति के बाहर है क्योंकि ज्ञान अनन्त है, अनन्त का पार कौन पा सकता है। महात्मा लोग एक देश में उत्पन्न होकर भी सभी देश अपने ही बना लेते हैं। सब समय उन के ही अनुकूल हो जाते हैं। श्री स्वामी विवेकानंद ऐसे ही महापुरुषों में हैं।

    यह भी पढ़े –

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    Biography of Swami Vivekananda – प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन

    स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन 6:35 पर सूर्य उदय से पहले भारत के कोलकाता शहर में उनके पैतृक घर में होता है। स्वामी विवेकानंद का का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे। वह नए विचारों को मानने वाले आदमी थे।

    और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्म कर्म में मानने वाली गृहिणी थी। वह नरेंद्र नाथ को रामायण रामायण और महाभारत के किस्से कहानियां सुनाया करती थी इस कारण बचपन से ही नरेंद्र की हिंदू धर्म ग्रंथों मैं बहुत रुचि थी। नरेंद्र नाथ का पालन पोषण बहुत ही खुशहाली मैं हुआ क्योंकि उनका परिवार बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार था।

    स्वामी विवेकानंद की मां ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि भगवान शिव आप मुझे एक प्यारा सा बेटा दीजिए, तब भुवनेश्वरी देवी के सपने में शिव भगवान आते हैं और उनको कहा कि तुम परेशान मत हो मैं आ रहा हूं और स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।

    स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

    Swami Vivekananda के परिवार में उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता भी जो की संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान् थे। वह ईश्वर की साधना में मग्न रहते थे और एक दिन ऐसा आया कि उन्होंने 25 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे।

    नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही शरारती और नटखट थे उनकी शरारतों के कारण सभी तंग रहते थे एक दिन की बात है नरेंद्र कुछ शरारत कर के भाग खड़े हुए उनकी बहन उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ी, यह देखकर नरेंद्र घबरा गया और वह नाली के पास जाकर नाली का कीचड़ अपने ऊपर लगा लिया और फिर अपनी बहन से बोले अब पकड़कर दिखाओ मुझे, यह देखकर उनकी बहन आश्चर्यचकित रह गई और नरेंद्र को वह पकड़ नहीं पाई क्योंकि नरेंद्र कीचड़ में लिपटा हुआ था।

    Biography of Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

    एक बार नरेंद्र नाथ अपने शहर में लगा मेला देखने गए तब नरेंद्र की उम्र सिर्फ 8 साल थी वह मेले में तरह तरह के रंग बिरंगे चीजें देखकर बहुत ही प्रसन्न हो गई और पूरे दिन मेले में घूमते रहे।

    और जैसे ही शाम ढलने लगी घर जाने का समय हुआ तो स्वामी विवेकानंद दें एक दुकानदार से मिट्टी का शिवलिंग खरीद लिया इसके बाद उनके पास बहुत कम 4 आने वैसे ही बचे थे इसके बाद वह सोच रहे थे कि भी इन 4 आने को कहां खर्च करें तभी उनको एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।

    जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो तो बच्चे ने बहुत ही सैनी से आवाज में जवाब दिया कि वह अपने घर से कुछ पैसे लेकर आया था लेकिन मेले में कहीं गुम हो गए अगर वह खाली हाथ घर गया तो उसकी मां उसको बहुत मारेगी यह देख नरेंद्र के मन में दयालुता का भाव उमड़ा और उन्होंने अपने बचे हुए 4 आने उस बच्चे को दे दिए।

    इस घटना से यह पता चलता है कि स्वामी जी बचपन से ही कितने दयालु स्वभाव के थे।

    जब नरेंद्र की माता को इस बात का पता चला तो उनकी मां ने उनको गले से लगा लिया और कहा कि जीवन में सदैव ही ऐसे काम करते रहना।

    Swami Vivekananda Information – स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा 

    • जब नरेन्द्र नाथ 1871 में उनका ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संसथान में एडमिशन कराया गया।
    • 1877 में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था।
    • 1879 में, उनके परिवार के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने।
    • वे विभिन्न विषयो जैसे दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे। हिंदु धर्मग्रंथो में भी उनकी बहोत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे, और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे।
      1881 में उन्होनें ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की थी वहीं 1884 में उन्होनें कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी।
    • इसके बाद उन्होनें 1884 में अपनी बीए की परीक्षा अच्छी योग्यता से उत्तीर्ण थी और फिर उन्होनें वकालत की पढ़ाई भी की।
    • 1884 का समय जो कि स्वामी विवेकानंद के लिए बेहद दुखद था क्योंकि इस समय उन्होनें अपने पिता को खो दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाईयो-बहनों की जिम्मेदारी आ गई लेकिन वे घबराए नहीं और हमेशा अपने दृढ़संकल्प में अडिग रहने वाले विवेकानंद जी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
    • 1889 में नरेन्द्र का परिवार वापस कोलकाता लौटा। बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे जिसकी वजह से उन्हें एक बार फिर स्कूल में एडमिशन मिला। दूरदर्शी समझ और तेजस्वी होने की वजह से उन्होनें 3 साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया।
    • स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण, गीता और हिन्दू शास्त्र वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे।

    Biography of Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

    • नरेंद्र ने David Hume, Immanuel Kant, Johann Gottlieb Fichte, Baruch Spinoza, Georg W.F. Hegel, Arthur Schopenhauer, Auguste Comte, John Stuart Mill और Charles Darwin के कामो का भी अभ्यास कर रखा था।
    • स्वामी विवेकानंद पढ़ाई में तो अव्वल रहते थे ही इसके अलावा वे शारीरिक व्यायाम, खेलों में भी हिस्सा लेते थे।
    • स्वामी विवेकानंद जी ने यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जेनेरल असेम्ब्ली इंस्टीटूशन में किया था।
    • स्वामी विवेकानंद को बंगाली भाषा की भी अच्छी समझ थी उन्होनें स्पेंसर की किताब एजुकेशन का बंगाली में अनुवाद किया आपको बता दें कि वे हर्बट स्पेंसर की किताब से काफी प्रभावित थे। जब वे पश्चिमी दर्शन शास्त्रियों का अभ्यास कर रहे थे तब उन्होंने संस्कृत ग्रंथो और बंगाली साहित्यों को भी पढ़ा।
    • स्वामी विवेकानंद के प्रतिभा के चर्चे उनके बचपन से ही थे। उन्हें बचपन से ही अपने गुरुओं की प्रशंसा मिली है इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा गया है।
    • बालक नरेद्र अपने विद्यार्थी जीवन में जॉन स्टुअर्ट, हर्बर्ट स्पेंसर और ह्यूम के विचारों से काफी प्रभावित थे उन्होनें इनके विचारों का गहनता से अध्ययन किया और अपने विचारों से लोगों में नई सोच का प्रवाह किया। इसी दौरान विवेकानंद जी का झुकाव ब्रह्म समाज के प्रति हुआ, सत्य जानने की जिज्ञासा से वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में भी आए।

    A Biography of Swami Vivekananda

    आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे और उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए।

    Ramakrishna Paramahamsa and Swami Vivekananda

    Biography of Swami Vivekananda

    इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की काफी सेवा भी की। इस तरह गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला गया।

    Swami Vivekananda Information in Hindi – रामकृष्ण मठ की स्थापना 

    इसके बाद रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई जिसके बाद नरेन्द्र ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। हालांकि बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ कर दिया गया।

    रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेन्द्र नाथ ने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत लिया और वे नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द हो गए।

    Swami Vivekananda’s travels in India – स्वामी विवेकानंद का भारत भ्रमण

    • आपको बता दें कि महज 25 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और इसके बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्या, वाराणसी, आगरा, वृन्दावन, अलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे।
    • इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। इस दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की।
    • 23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे जहां वह 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले।
    • जिसमें उन्होनें अपनी भारत यात्रा के दौरान हुई वेदना प्रकट की और कहा कि उन्होनें इस यात्रा में देश की गरीबी और लोगों के दुखों को जाना है और वे ये सब देखकर बेहद दुखी हैं। इसके बाद उन्होनें इन सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया।
    • विवेकानंद जी के अमेरिका यात्रा के बाद उन्होनें दुनिया में भारत के प्रति सोच में बड़ा बदलाव किया था।

    Swami Vivekananda Chicago Speech – स्वामी जी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण (1893 – विश्व धर्म सम्मेलन) 

    1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी जिसका खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

    स्वामी विवेकानंद के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा था, अपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था।

    उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए।

    Complete Works of Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद के अध्यात्मिक कार्य

    • धर्म संसद खत्म होने के बाद अगले 3 सालों तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका में वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते रहे। वहीं अमेरिका की प्रेस ने स्वामी विवेकानंद को ”Cylonic Monik from India” का नाम दिया था।
    • इसके बाद 2 साल उन्होनें शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्राइट और बोस्टन में लेक्चर दिए । वहीं 1894 में न्यूयॉर्क में उन्होनें वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।
    • आपको बता दें 1895 में उनके व्यस्तता का असर उनकी हेल्थ पर पड़ने लगा था जिसके बाद उन्होनें लेक्चर देने की बजाय योग से संबंधित कक्षाएं देने का निर्णय लिया था वहीं इस दौरान भगिनी निवेदिता उनकी शिष्य बनी जो कि उनकी प्रमुख शिष्यों में से एक थी।
    • वहीं 1896 में वे ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से मिले जिन्होनें स्वामी जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखी थी। इसके बाद 15 जनवरी 1897 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ इस समय वे काफी लोकप्रिय हो चुके थे और लोग उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे।
    • इसके बाद स्वामी जी रामेश्वरम पहुंचे और फिर वे कोलकाता चले गए जहां उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से भारी संख्या में लोग आते थे। आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद अपने भाषणों में हमेशा विकास का जिक्र करते थे।

    रामकृष्ण मिशन की स्थापना – Ramakrishna Mission Established

    • 1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद कोलकाता वापस लौटे और उन्होनें रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम बढ़ाना था।
    • साहित्य, दर्शन और इतिहास के विद्धान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा का सभी को कायल कर दिया था और अब वे नौजवानों के लिए आदर्श बन गए थे।
    • 1898 में स्वामी जी ने Belur Math – बेलूर मठ की स्थापना की जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम प्रदान किया।
    • इसके अलावा भी स्वामी विवेकानंद जी ने अनय दो मठों की और स्थापना की।
    स्वामी विवेकानंद की दूसरी विदेश यात्रा
    • स्वामी विवेकानन्द अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर 20 जून 1899 को अमेरिका चले गए। इस यात्रा में उन्होनें कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और संफ्रान्सिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की।
    • जुलाई 1900 में स्वामी जी पेरिस गए जहां वे ‘कांग्रेस ऑफ दी हिस्ट्री रीलिजंस’ में शामिल हुए। करीब 3 माह पेरिस में रहे इस दौरान उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वानी तरियानंद थे।
    • इसके बाद वे 1900 के आखिरी में भारत वापस लौट गए। इसके बाद भी उनकी यात्राएं जारी रहीं। 1901 में उन्होनें बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थय लगातार खराब होता चला जा रहा था। अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था।

    Swami Vivekananda Death – स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण

    4 जुलाई 1902 को महज 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई। वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होनें महा-समाधि ली थी। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

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